India’s Rich Heritage comprising of the beautiful festive culturally enriched state of Rajasthan, the birth place of Bhakt Shiromani Meera Bai, a devotee of Lord Krishna. “Pujya Jaya KishoriJi” – A disciple, born in Brahmin family- blessed by Lord Krishna to “Pujya Radhe Shyam Ji Haritpal” and “Pujya Geeta Devi Haritpal” in her ancestral village of Rajasthan.
The love, stories, and compassionate teachings of Dadaji and Dadiji about Lord Krishna, developed extreme dedication and devotion towards Lord Krishna and developed a magnetic feeling to dedicate her life towards Bhakti of Radhe Krishna. She being a keen learner of the teaching of “Bhagwad Gita” left worldy pleasures and materialistic mind-set at a tender age of five(5 years) to completely and dedicatedly evolve in the learning and preaching of the highest spiritual writings of Shri Shyam Charit Maanas, Shri Krishna Leela, Shri Rani Sati Dadi Charitrya, Nani Bairo Mayro. Apart from this she is also a regular student of “Mahadevi Birla World Academy” Kolkata.
She has been able to spread her teachings by events and programs to all communities and countries worldwide. Her most popular and impactful events has been preaching of “NaniBairoMayro” – more fully description by her, the devotion of Bhakt Narsingh Mehta, towards Lord Krishna, which compelled Lord Krishna to participate in NaniBairoMayro for his devotee.
Her appeal, support and efforts towards stopping female foeticide in all parts of India, support girl child, revive cultural respect towards parents and elderly people, arrange support for physically handicapped persons.
पूज्या जया "किशोरीजी" का संक्षिप्त परिचय
बालव्यास राधास्वरुपा पूज्या जया "किशोरीजी" का जन्म राजस्थान की मरुधर पावन भूमि के सुजानगढ़ नामक गॉव में गौड़ ब्राह्मण परिवार में हुआ। दादाजी एवं दादीजी के सानिध्य में रहने और घर में भक्ति का माहौल रहने के कारण बचपन में ही मात्र 6 वर्ष की अल्पआयु में ही आपके हृदय में भगवान श्री कृष्ण के प्रति प्रेमभाव जागृत हो गया।
बचपन में दादाजी एवं दादीजी के द्वारा भगवान की करुणा, उदारता और भक्त के प्रति अनन्य प्रेम से जुड़ी कहानियां सुनकर आपके मासूम और निश्चल कोमल हृदय में भगवान के प्रति दृढ़ विश्वास बढ़ता चला गया और यही प्रेमभाव, भक्तिभाव 6 वर्ष की छोटी बालिका जया "किशोरीजी" के मुखारबिन्द से ऐसा उमड़ा, जिसने भजनों के माध्यम से जन-जन के हृदय को बहुत ही गहराई से छुआ। मात्र 9 वर्ष की अल्पआयु में ही आपने संस्कृत में लिंगाष्टकम्, शिव-तांडव स्तोत्रम्, रामाष्टकम्, मधुराष्टकम्, श्रीरुद्राष्टकम्, शिवपंचाक्षर स्तोत्रम्, दारिद्रय दहन शिव स्तोत्रम् आदि कई स्तोत्रों को गाकर जन-जन का मन मोह लिया। 10 वर्ष की अल्प आयु में ही आपने अमोघफलदायी सम्पूर्ण सुन्दरकाण्ड गाकर लाखों भक्तों के मन में अपना एक विशेष स्थान बना लिया।
बचपन से ही परम पूज्य गोलोकवासी स्वामी श्री रामसुखदासजी महाराज की वाणी से अत्यधिक प्रभावित होकर उनकी वाणी को ही आपने अपना गुरु स्वीकार कर लिया और उनके द्वारा गाये गये "नानी बाई रो मायरो" को अपनी मातृभाषा मारवाड़ी (राजस्थानी) भाषा में तैयार किया और फिर इसे जन-जन के हृदय तक पहुंचाया। आपके प्रारम्भिक गुरु राधारानी के अनन्य भक्त बैकुण्ठनाथ जी मंदिर वाले गुरुदेव पं. श्री गोविन्दरामजी मिश्र ने श्रीकृष्ण के प्रति आपके असीम प्रेम भाव को देखते हुए आपको "किशोरीजी" की उपाधि आशीर्वाद स्वरुप दी लेकिन ज्यादा दिनों तक आपको उनका सानिध्य प्राप्त नहीं हो सका। आपके तात्कालिन गुरु भागवताचार्य ज्योतिषाचार्य गुरुदेव पं. श्री विनोदकुमारजी सहल हैं, जिनसे आप श्रीमद् भागवत ज्ञान महायज्ञ की शिक्षा ग्रहण कर रही हैं।
आपका रहन-सहन प्रायः एक साधारण बालिका की तरह ही रहा है। धर्म के साथ-साथ ज्ञान का भी पूरा सहयोग बना रहे, इसलिये आपने अपनी स्कूली शिक्षा भी जारी रखी है। कोलकाता के अति प्रतिष्ठित स्कूल महादेवी बिड़ला वर्ल्ड ऐकेडमी में आप बॉरहवीं कक्षा की छात्रा हैं। आपकी ओर से धर्म के साथ-साथ सेवा का कार्य भी होता रहे, समाज के पिछड़े दीन-हीन असहाय विकलांग बच्चों को सहारा मिल सके और उनके मन से हीन भावना निकल सकें, इस विचार से आपने अपनी सम्पूर्ण कथा इन बच्चों के निःशुल्क आपरेशन, भोजन व शिक्षा हेतु समर्पित कर दी है। कथाओं से आने वाली समस्त दान राशि आप नारायण सेवा ट्रस्ट, उदयपुर राजस्थान को दान करती हैं, जिससे विकलांग-विवाह को प्रोत्साहन मिलने के साथ-साथ उन्हें रोजगार और समाज में सर उठाकर जीवन यापन करने का साहस मिलता है।
आप भ्रूण हत्या को सबसे जघन्य अपराध मानती हैं और अपनी कथा में सभी लोगों से प्रार्थना करती हैं कि ऐसा जघन्य अपराध न करें। वृद्ध आश्रमों की बढ़ती हुई संख्या को देखते हुए आप इसे समाज के पतन का कारण मानती हैं। गो-हत्या का आप सख्ती से विरोध करती हैं। आप अपने प्रवचनों में इन सभी बातों पर विशेष जोर देते हुये भावुक हो उठती हैं। 6 वर्ष की उम्र से भक्ति के सफर की शुरुआत करके आज आप 16 वर्ष की अल्प आयु में अपनी कथाओं और प्रवचनों के माध्यम से हजारों दीन-हीन व असहाय विकलांग बच्चों के जीवन को एक नई दिशा दे रही हैं।
।। कलियुग केवल नाम आधारा ।। सुमिर-सुमिर नर उतरहिं पारा।।
इस लोकोक्ति के आधार पर आप भविष्य में भी यही चाहती हैं कि ठाकुरजी का नाम सदैव आपके मुख से निकलता रहे। ठाकुरजी की इच्छा को ही सर्वोपरि मानते हुए आप उनके द्वारा दिखाई गई राह पर चलना चाहती हैं। आप खाटुनरेश श्री श्याम बाबा और श्री राणीसती दादीजी की परम भक्त हैं और यही कामना करती हैं कि उनका आशीर्वाद सदैव आपके साथ रहे।