प्राचीन भारत ने विश्व को अनेक महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ प्रदान किये. उदाहरणार्थ, यहाँ चार वेदों की रचना हुई. ऋग्वेद उनमें प्राचीनतम वेद है. ऋग्वेद के अतिरिक्त तीन और वेद हैं जिनके नाम यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद भी उनकी देन हैं. इनके अलावा अनेक धार्मिक ग्रन्थ भी हैं, जैसे “ब्राह्मण” (वेद मन्त्रों की व्याख्या करने वाले ग्रन्थ), आरण्यक (ब्राह्मण ग्रन्थों के ही अंग), उपनिषद्, सूत्र, वेदांग तथा उपवेद. भारत ने विश्व को छह प्रकार के दर्शन सिद्धांत दिए. जहाँ तक लौकिक साहित्य का प्रश्न है भारत ने विश्व को रामायण और महाभारत जैसे विशालकाय महाकाव्य दिए हैं जिनका आज भी कोई जोड़ नहीं है. महाभारत को शतसाहस्रीसंहिता के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसमें एक लाख से अधिक श्लोक हैं. इस देश में 108 पुराणों की रचना हुई जिनमें अग्नि, शिव, भागवत, ब्रह्म आदि प्रमुख 18 पुराण हैं. ये सभी अपने-आप में विश्वकोष ही हैं जिनमें युद्धकला, अश्वचिकित्सा, गजचिकित्सा, वैदेशिक नीति आदि विषयों को भी समाहित किया गया है. संस्कृत में नीतिशास्त्र की भी परम्परा रही है. ऐसे शास्त्रों में कौटिल्य नीतिशास्त्र और भर्तृहरि का नीतिशतक विशेष रूप से उल्लेखनीय है. विश्व-प्रसिद्ध राजनीतिक ग्रन्थ अर्थशास्त्र इन्हीं कौटिल्य (चाणक्य) की रचना है. भारत ने विश्व को पंचतन्त्र जैसी रचना दी जिसमें वर्णित कहानियाँ आज पूरे विश्व में पढ़ी जाती हैं.
संस्कृत के कवि कालिदास का नाटक “अभिज्ञानशाकुंतलम्” विश्व की श्रेष्ठ कलाकृतियों में से एक माना जाता है. इस नाटक का अनुवाद विश्व की अनेक भाषाओँ में किया गया है.
जैन धर्म एवं बौद्ध धर्म के भी अनेक ग्रन्थ हैं जिनकी संख्या सैंकड़ों में है. ये ग्रन्थ प्राकृत, पालि और संस्कृत भाषाओं में हैं. इनमें जातक कथाओं की विशेष महिमा है. कई विदेशी तीर्थयात्री आकर इन ग्रन्थों का अध्ययन समय-समय पर करते रहे.