राम नवमी को भगवान श्रीराम के अवतरण दिवस के रूप मे मानते है। यह पर्व हिंदू पंचांग के प्रथम माह चैत्र के शुक्ला पक्ष की नवमी के दिन आता है तथा यह उत्सव चैत्र नवरात्रि का नौवें दिन के रूप मे भी मनाया जाता है। श्री राम का प्राकट्य अभिजित नक्षत्र में दोपहर बारह बजे हुआ था।
भगवान श्रीराम को भारत मे एक आदर्श पुरुष के रूप मे माना जाता है, इस कारण उन्हें मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम कहा जाता है, तथा उनके उच्चतम प्रशासनिक कौशल को राम-राज्य के नाम से संबोधित किया जाता है।
राम नवमी के दिन भक्त पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र की जन्मभूमि अयोध्या की पवित्र नदी सरयू में डुबकी लगाते हैं। तथा भक्त भगवान श्री राम, उनकी पत्नी माता सीता, उनके छोटे भाई श्री लक्ष्मण और श्री राम भक्त हनुमान जी से संबंधित भजन, कीर्तन, रामायण पाठ, उपवास, शोभा यात्रा और रथ यात्रा का आयोजन किया जाता हैं। माना जाता है कि, श्री गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस दिन राम चरित मानस की रचना आरंभ की थी।
राम नवमी एक प्रसिद्ध हिन्दू त्योहार है। यह शुक्ल पक्ष 'या हिन्दू चंद्र वर्ष की चैत्र महीने के नौवें दिन (नवमी) पर मनाया जाता है। यह त्योहार भगवान विष्णु के अवतार मर्यादा पुरुषोत्तम राम के जन्म की स्मृति में मनाया जाता है। इस दिन को राम नवमी भी कहा जाता है।
राम नवमी का त्योहार भारत के लोगों द्वारा ही नहीं बल्कि दुनिया के अन्य हिस्सों में रहने वाले हिन्दू समुदाय के लोगों द्वारा भी मनाया जाता है। यह त्योहार बेहद खुशी और उत्साह के साथ मनाया जाता है। माना जाता है इस अवसर पर जो भक्त उपवास करते हैं उन पर अपार खुशी और सौभाग्य की बौछार होती है।
महान महाकाव्य रामायण के अनुसार हिन्दू वर्ष 5114 ई.पू. में इसी दिन, राजा दशरथ की प्रार्थना स्वीकार हुई थी। यह राजा दशरथ की तीन पत्नियां थीं। कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी। लेकिन तीन में से कोई भी उसे अपना वंश नहीं दे पाई।
राजा को अपने सिंहासन के लिए एक वारिस की जरूरत है यहां तक कि उनकी शादी के कई साल बाद, राजा पिता बनने में असमर्थ था। वंश प्राप्त करने के लिए महान ऋषि वशिष्ठ ने राजा दशरथ को पवित्र अनुष्ठान पुत्र कामेश्टी यज्ञ करने की सलाह दी। राजा दशरथ की स्वीकृति के साथ, महान ऋषि महर्षि रुर्श्य श्रुन्गा ने विस्तृत ढंग से अनुष्ठान किया।
राजा को पायसम का एक कटोरा (दूध और चावल से तैयार भोजन) सौंप दिया और उनकी पत्नियों के बीच यह भोजन वितरित करने के लिए कहा गया। राजा ने अपनी पत्नी कैकेयी और कौशल्या और एक अन्य आधा पायसम का हिस्सा पत्नी सुमित्रा को दे दिया। इस भोजन के कारण राम (कौशल्या से), भरत (कैकेयी से) तथा लक्ष्मण व शत्रुघ्न (सुमित्रा से) का जन्म हुआ।
राम नवमी व्रत महिलाओं के द्वारा किया जाता है। इस दिन व्रत करने वाली महिला को प्रात: सुबह उठना चाहिए और सुबह उठकर, पूरे घर की साफ- सफाई कर घर में गंगा जल छिड़क कर, शुद्ध कर लेना चाहिए। इसके पश्चात स्नान कर व्रत का संकल्प लेना चाहिए।
इसके बाद एक लकड़ी के चौकोर टुकड़े पर सातिया (स्वस्तिक) बनाकर एक जल से भरा गिलास रखती है और साथ ही अपनी अंगुली से चांदी का छल्ला निकाल कर रखती है। इसे प्रतीक रूप से गणेशजी माना जाता है। व्रत कथा सुनते समय हाथ में गेहूं-बाजरा आदि के दाने लेकर कहानी सुनने का भी महत्व कहा गया है।
व्रत वाले दिन मंदिर में अथवा मकान पर ध्वजा, पताका, तोरण और बंदनवार आदि से सजाने का विशेष विधि-विधान है। व्रत के दिन कलश स्थापना और राम जी के परिवार की पूजा करनी चाहिए। दिन भर भगवान श्री राम के भजन, स्मरण, स्तोत्र पाठ, दान, पुन्य, हवन, पितृश्राद्ध और उत्सव किया जाना चाहिए और रात्रि में भी गायन, वादन करना शुभ रहता है।
श्री राम नवमी का व्रत करने से व्यक्ति के ज्ञान में वृ्द्धि होती है। उसकी धैर्य शक्ति का विस्तार होता है। इसके अतिरिक्त उपवास को विचार शक्ति, बुद्धि, श्रद्धा, भक्ति और पवित्रता की भी वृद्धि होती है। इस व्रत के विषय में कहा जाता है, कि जब इस व्रत को निष्काम भाव से किया जाता है और आजीवन किया जाता है, तो इस व्रत के फल सर्वाधिक प्राप्त होते है।
राम नवमी, भगवान श्री राम के जन्मदिन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। हर्ष एवं उल्लास के इस पर्व के मनाए जाने का उद्देश्य है - हमारे भीतर "ज्ञान के प्रकाश का उदय"। भगवान राम का जन्म राजा दशरथ और रानी कौशल्या के यहाँ हुआ था।
कौशल्या का अर्थ है, कुशलता और दशरथ का मतलब है, जिसके पास दस रथ हो। हमारे शरीर में १० अंग हैं, पाच ज्ञानेन्द्रियाँ (पाच इन्द्रियों के लिए) और पांच कर्मेन्द्रिया (जो की दो हाथ, दो पैर, जननेन्द्रिय, उत्सर्जन अंग और मुह)।
सुमित्रा का अर्थ है, जो सब के साथ मैत्रीय भाव रखे और कैकयी का अर्थ है, जो बिना के स्वार्थ के सब को देती रहे।
इस प्रकार दशरथ और उनकी तीन पत्नियाँ एक ऋषि के पास गए। जब ऋषि ने उनको प्रसाद दिया तब ईश्वर की कृपा से, भगवान राम का जन्म हुआ।
भगवान राम स्वयं का प्रकाश हैं, लक्ष्मण (भगवन राम के छोटे भ्राता) का अर्थ है, सजगता, शत्रुघ्न का अर्थ हैं, जिसका कोई शत्रु ना हो या जिसका कोई विरोधी ना हो। भरत का अर्थ है योग्य।
अयोध्या (जहाँ राम का जन्म हुआ है) का अर्थ है, वह स्थान जिसे नष्ट ना किया जा सके।
इस कहानी का सार है: हमारा शरीर अयोध्या है, पांच इन्द्रियां और पांच कर्मेन्द्रियाँ इस के राजा हैं। कौशल्या, इस शरीर की रानी है। सभी इन्द्रियां ब्राह्य मुखी हैं और बहुत कुशलता से इन्हें भीतर लाया जा सकता है और ये तभी हो सकता हैं जब भगवन राम, प्रकाश हम में जन्म लें।
भगवान राम का जन्म नवमी के दिन हुआ था (हिन्दू पंचांग के अनुसार नौवां दिन)। मैं इनके महत्व के बारे में किसी और समय बताऊंगा।
जब मन (सीता) अहंकार (रावण) के द्वारा अपहृत हो जाता है, तो दिव्य प्रकाश और सजगता (लक्षमण) के माध्यम भगवन हनुमान (प्राण के प्रतीक) के कंधो पर चढ़कर उसे घर वापस लाया जा सकता है। ये रामायण हमारे शरीर में हर समय घटित होती रहती है।