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चैत्र नवरात्रि - Navratri

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नवरात्रि, नवदुर्ग नौ दिनों का उत्सव है, सभी नौ दिन माँ आदि शक्ति के विभिन्न रूपों को समर्पित किए गये हैं। देवी के यह नौ रूप, नवग्रहों के अधिपत्य तथा उनसे जुड़ी बाधाओं को दूर व उन्हें प्रवल करने हेतु भी पूजे जाते हैं। नवरात्रि को वर्ष में दो बार मनाया जाता है जिसे चैत्र नवरात्रि तथा शारदीय नवरात्रि के नाम से जाना जाता है।

चैत्र नवरात्रि | Chaitra Navratri in Hindi

नवरात्र वह समय है, जब दोनों रितुओं का मिलन होता है। इस संधि काल मे ब्रह्मांड से असीम शक्तियां ऊर्जा के रूप में हम तक पहुँचती हैं। मुख्य रूप से हम दो नवरात्रों के विषय में जानते हैं - चैत्र नवरात्र एवं आश्विन नवरात्र। चैत्र नवरात्रि गर्मियों के मौसम की शुरूआत करता है और प्रकृति माँ एक प्रमुख जलवायु परिवर्तन से गुजरती है। यह लोकप्रिय धारणा है कि चैत्र नवरात्री के दौरान एक उपवास का पालन करने से शरीर आगामी गर्मियों के मौसम के लिए तैयार होता है।

चैत्र नवरात्रि | Chaitra Navratri in Hindi

यह चैत्र शुक्ल पक्ष प्रथमा से प्रारंभ होती है और रामनवमी को इसका समापन होता है। इस वर्ष चैत्र नवरात्र घटस्थापना का मुहूर्त, २५ मार्च से प्रारंभ है और समापन २ अप्रैल को है। नवरात्रि में माँ भगवती के सभी नौ रूपों की उपासना की जाती है। इस समय आध्यात्मिक ऊर्जा ग्रहण करने के लिए लोग विशिष्ट अनुष्ठान करते हैं। इस अनुष्ठान में देवी के रूपों की साधना की जाती है।

हिंदू पुराण और ग्रंथों के अनुसार, चैत्र नवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण नवरात्रि है जिसमें देवी शक्ति की पूजा की जाती थी, रामायण के अनुसार भी भगवान राम ने चैत्र के महीने में देवी दुर्गा की उपासना कर रावण का वध कर विजय प्राप्त की थी। इसी कारणवश चैत्र नवरात्रि पूरे भारत में, खासकर उत्तरी राज्यों में धूमधाम के साथ मनाई जाती है। यह हिंदू त्यौहार हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में बहुत लोकप्रिय है। महाराष्ट्र राज्य में यह "गुड़ी पड़वा" के साथ शुरू होती है, जबकि आंध्र प्रदेश जैसे दक्षिणी राज्यों में, यह उत्सव "उगादी" से शुरू होता है।

चैत्र नवरात्रि की तिथि | Chaitra Navratri dates in Hindi

२५ मार्च (पहला दिन)

प्रतिपदा - इस दिन पर "घटत्पन", "चंद्र दर्शन" और "शैलपुत्री पूजा" की जाती है।

२६ मार्च (दूसरा दिन)

दिन पर "सिंधारा दौज" और "माता ब्रह्राचारिणी पूजा" की जाती है।

२७​ मार्च (तीसरा दिन)

यह दिन "गौरी तेज" या "सौजन्य तीज" के रूप में मनाया जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान "चन्द्रघंटा की पूजा" है।

२८ मार्च (चौथा दिन)

"वरद विनायक चौथ" के रूप में भी जाना जाता है, इस दिन का मुख्य अनुष्ठान "कूष्मांडा की पूजा" है।

२९ मार्च (पांचवा दिन)

इस दिन को "लक्ष्मी पंचमी" कहा जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान "नाग पूजा" और "स्कंदमाता की पूजा" जाती है।

३० मार्च (छटा दिन)

इसे "यमुना छत" या "स्कंद सस्थी" के रूप में जाना जाता है और इस दिन का मुख्य अनुष्ठान "कात्यायनी की पूजा" है।

३१ मार्च (सातवां दिन)

सप्तमी को "महा सप्तमी" के रूप में मनाया जाता है और देवी का आशीर्वाद मांगने के लिए “कालरात्रि की पूजा” की जाती है।

१ अप्रैल (आठवां दिन)

अष्टमी को "दुर्गा अष्टमी" के रूप में भी मनाया जाता है और इसे "अन्नपूर्णा अष्टमी" भी कहा जाता है। इस दिन "महागौरी की पूजा" और "संधि पूजा" की जाती है।

२ अप्रैल (नौंवा दिन)

"नवमी" नवरात्रि उत्सव का अंतिम दिन "राम नवमी" के रूप में मनाया जाता है और इस दिन "सिद्धिंदात्री की पूजा महाशय" की जाती है।

चैत्र नवरात्रि के दौरान अनुष्ठान

बहुत भक्त नौ दिनों का उपवास रखते हैं। भक्त अपना दिन देवी की पूजा और नवरात्रि मंत्रों का जप करते हुए बिताते हैं।

चैत्र नवरात्रि के पहले तीन दिनों को ऊर्जा माँ दुर्गा को समर्पित है। अगले तीन दिन, धन की देवी, माँ लक्ष्मी को समर्पित है और आखिर के तीन दिन ज्ञान की देवी, माँ सरस्वती को समर्पित हैं। चैत्र नवरात्रि के नौ दिनों में से प्रत्येक के पूजा अनुष्ठान नीचे दिए गए हैं।

पूजा विधि

घट स्थापना नवरात्रि के पहले दिन सबसे आवश्यक है, जो ब्रह्मांड का प्रतीक है और इसे पवित्र स्थान पर रखा जाता है, घर की शुद्धि और खुशाली के लिए।

१. अखण्ड ज्योति

नवरात्रि ज्योति घर और परिवार में शांति का प्रतीक है। इसलिए, यह जरूरी है कि आप नवरात्रि पूजा शुरू करने से पहले देसी घी का दीपक जलतें हैं। यह आपके घर की नकारात्मक ऊर्जा को कम करने में मदद करता है और भक्तों में मानसिक संतोष बढ़ाता है।

२. जौ की बुवाई

नवरात्रि में घर में जौ की बुवाई करते है। ऐसी मान्यता है की जौ इस सृष्टी की पहली फसल थी इसीलिए इसे हवन में भी चढ़ाया जाता है। वसंत ऋतू में आने वाली पहली फसल भी जौ ही है जिसे देवी माँ को चैत्र नवरात्रि के दौरान अर्पण करते है।

३. नव दिवस भोग (9 दिन के लिए प्रसाद)

प्रत्येक दिन एक देवी का प्रतिनिधित्व किया जाता है और प्रत्येक देवी को कुछ भेंट करने के साथ भोग चढ़ाया जाता है। सभी नौ दिन देवी के लिए 9 प्रकार भोग निम्न अनुसार हैं:

   1 दिन: केले

   2 दिन: देसी घी (गाय के दूध से बने)

   3 दिन: नमकीन मक्खन

   4 दिन: मिश्री

   5 दिन: खीर या दूध

   6 दिन: माल पोआ

   7 दिन: शहद

   8 दिन: गुड़ या नारियल

   9 दिन: धान का हलवा

४. दुर्गा सप्तशती

दुर्गा सप्तशती शांति, समृद्धि, धन और शांति का प्रतीक है, और नवरात्रि के 9 दिनों के दौरान दुर्गा सप्तशती के पाठ को करना, सबसे अधिक शुभ कार्य माना जाता है।

५. नौ दिनों के लिए नौ रंग

शुभकामना के लिए और प्रसंता के लिए, नवरात्रि के नौ दिनों के दौरान लोग नौ अलग-अलग रंग पहनते हैं:

   1 दिन: हरा

   2 दिन: नीला

   3 दिन: लाल

   4 दिन: नारंगी

   5 दिन: पीला

   6 दिन: नीला

   7 दिन: बैंगनी रंग

   8 दिन: गुलाबी

   9 दिन: सुनहरा रंग

६. कन्या पूजन

कन्या पूजन माँ दुर्गा की प्रतिनिधियों (कन्या) की प्रशंसा करके, उन्हें विदा करने की विधि है। उन्हें फूल, इलायची, फल, सुपारी, मिठाई, श्रृंगार की वस्तुएं, कपड़े, घर का भोजन (खासकर: जैसे की हलवा, काले चने और पूरी) प्रस्तुत करने की प्रथा है।

अनुष्ठान के कुछ विशेष नियम

बहुत सारे भक्त निचे दिए गए अनुष्ठानों का पालन करते हैं:

   प्रार्थना और उपवास चैत्र नवरात्रि समारोह का प्रतीक है। त्योहार के आरंभ होने से पहले, अपने घर में देवी का स्वागत करने के लिए घर की साफ सफाई करते हैं।

   सात्विक जीवन व्यतीत करते हैं। भूमि शयन करते हैं। सात्त्विक आहार करते हैं।

   उपवास करते वक्त सात्विक भोजन जैसे कि आलू, कुट्टू का आटा, दही, फल, आदि खाते हैं।

   नवरात्रि के दौरान, भोजन में सख्त समय का अनुशासन बनाए रखते हैं और अपने व्यवहार की निगरानी भी करते हैं, जैसे की

   अस्वास्थ्यकर खाना (Junk Food) नहीं खाते।

   सत्संग करते हैं।

   ज्ञान सूत्र से जुड़ते हैं।

   ध्यान करते हैं।

   चमड़े का प्रयोग नहीं करते हैं।

   क्रोध से बचे रहते हैं।

   कम से कम 2 घंटे का मौन रहते हैं।

   अनुष्ठान समापन पर क्षमा प्रार्थना का विधान है तथा विसर्जन करते हैं।

 

 


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