‘पद्म पुराण’ में सत्य के महत्त्व को उजागर करने वाली एक कथा दी गई है। एक गाय चरागाह से लौटते समय अपनी संगिनियों से बिछुड़ गई। उसे याद आया कि देरी के कारण गोशाला में बँधा उसका बछड़ा भूख से व्याकुल हुआ रंभा रहा होगा।
चिंतामग्न वह गोशाला की ओर तेजी से लौट रही थी कि अचानक एक बाघ ने सामने आकर उसका रास्ता रोक लिया। बाघ ने कहा, ‘मैं बहुत भूखा हूँ। तुझे खाकर क्षुधा की पूर्ति करूँगा।
गाय अपने बछड़े के भूख से व्याकुल होने की सोचकर रोते हुए बोली, ‘व्याघ्रराज, मुझे अपने प्राणों का मोह नहीं है, किंतु बछड़े के भूख से छटपटाने की आशंका से मैं व्यथित हूँ। तुम विश्वास रखो, मैं उसे दूध पिलाने के बाद तुम्हारे पास लौट आऊँगी।’
गाय के करुणा भरे वचन सुनकर बाघ का दिल पसीज गया। उसने उसे अनुमति दे दी। गाय दौड़ी-दौड़ी गोशाला पहुँची। बछड़े को दूध पिलाकर उसने लाड़ किया और अन्य गायों से कहा, ‘मैं अपने बछड़े को तुम्हारे सुपुर्द कर रही हूँ। इसे बारी-बारी से दूध पिलाकर इसका पालन- पोषण करना।
अन्य गायों ने कहा, ‘क्यों सत्यव्रता बनकर मौत के मुँह में जा रही हो?’ गाय ने जवाब दिया, ‘वचन भंग करना अधर्म है। मैं प्राण बचाने के लिए पाप की भागी नहीं बन सकती।’
गाय को लौटा देखकर बाघ दंग रह गया। उसने कहा, ‘तुम जैसी सत्यवादी के प्राण लेकर मैं पाप का भागी नहीं बनना चाहता। जाओ, अपने बछड़े का पालन-पोषण करो।
यह कहते ही करुणा और दया के पुण्य के फलस्वरूप वह बाघ स्वर्गलोक प्रयाण कर गया।